प्रेम दिवस – Delhi Poetry Slam

प्रेम दिवस

By Deepak Goswami

तुम राघव जैसे श्वेत प्रिये
या कान्हा जैसे श्यामल हो,
तुम लिए सूर्य का ताप प्रिये
या शशि सरीखे शीतल हो!
तुम एक झील से शांत प्रिये
या निर्झर का कोलाहल हो,
तुम जो भी हो, जैसे भी हो
अब तक नजरों से ओझल हो!

इस प्रेम दिवस का सूनापन
मुझ विरहन को तड़पाता है!
मेरी रातों का खालीपन
मुझे दौड़ काटने आता है!
मैं जीवन के संघर्षों में
तुम्हें खोज-खोज कर हारी हूं,
अब तो मेरी सुध लो प्रीतम,
आखिर मैं अबला नारी हूं!

मैं मन के बंद लिफाफों में
कुछ पत्र संजोए बैठी हूं,
तुमको पाने को उत्सुक हूं,
खुद को ही खोए बैठी हूं!
तुम जब मुझको मिल जाओगे
सर्वस्व समर्पण कर दूंगी,
तुम आंखों से ही कह देना,
मैं आंखों से ही पढ़ लूंगी!


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