By Dev Sachde
नैना अश्क़ थे, रात काली थी, घनी थी. तब ही, दरवाज़े पर एक दस्तक हुई,
मैंने पूछा ‘कौन? कौन हो तुम? और क्या चाहिए तुम्हें?’
दरवाज़े के उस ओर से भविष्य उचि आवाज़ में बोला,
‘मैं तुम्हारा आने वाला कल हूँ, अतीत के ज़ख्मों को भर दूगा ,
मैं धुंधली दृष्टि को मिटा दुगा, वर्तमान को भी सुधार दुगा,
बस खोलो दरवाज़ा और यह सब तुम्हारा!
मैंने शराब का ग्लास टेबल पर रखा, आंसू पोछे, और दरवाज़ा
खोलने बस खड़ा ही होने वाला था कि मानो जैसे ख़यालों की एक बौछार आ पड़ी!
भविष्य यदि रोमांचक है, तो अतीत भी तो सुहाना है!
दरवाज़े पर जिस दस्तक दे रहे भविष्य को सुनने के लिए,
मैंने अतीत को वर्तमान में न जिया था, वह भविष्य मेरे वर्तमान में क्यों भला दस्तक देगा? अतीत में क्यों नहीं?
जिसकी एक झलक पाने के लिए मैंने सब कुछ दाव पे लगाया था, और खोया था,
वह भविष्य मेरे वर्तमान में दस्तक देकर क्या मेरा मज़ाक़ बना रहा है?
बहार, दरवाज़े के उस पार वह सब कुछ है जिसको पाने ख़ातिर मेरा वर्तमान सुन्न है।
मैंने खुदको एक हल्की सी मुस्कान दी, शराब का एक घूँट लगाया और खड़ा होकर दरवाज़े की ओर देख बोला,
‘अगर तू सही में मेरा आने वाला कल है, तो सुन मेरी बात!
डरता था तुझसे मैं! ख़ौफ़ बहुत की खाता था, याद है आज भी मुझे वह रातें,
जब तेरे ख़ातिर मैं चैन से नहीं सो पाता था!
युधिष्ठिर की तरह मैंने भी ईमानदारी से अतीत में सपनों का द्यूत खेला था,
क्या ग़ज़ब शकुनि पासे फैके तूने, ए भविष्य! तेरी फ़िक्र करते हुए मैं भी सब हार गया!
न चिंता है अब, ना ही तेरे लिये कोई आक्रोश है, सब कुछ तो छीन लिया तूने, अब क्या लेने आया है,
यह रिश्वत ठुकराकर मैं अब वर्तमान मैं जियूगा, हज़ार कसौटी को मात देकर, तेरे सामने सीना फुलाए खड़ा होऊगा!
सुहाने अतीत को कभी-क़बार शराब पीने बुला लिया करूगा!’
अचानक से मेरी काल भैरव उपासना करते हुए आखें खुली, और भर आयी।
टेबल पर ना ही शराब का ग्लास था, ना कोई दस्तक थी।
थी तो बस, काल भैरव की श्रद्धा।