By Cheshta Sharma
हो स्शस्त्र अब ख़ुद की खोज पर निकल,
जहां अस्त्र हो तेरा लक्ष्य, चरित्र और संकल्प।
अतीत का ना हो जहां कोई विकल्प,
बनाने नये सवेरे को तू ख़ुद की खोज पर निकल।
बहुत हो गई ये ज़िंदगी की कश्मकश,
बढ़ आगे चीरकर ख़्यालों के इस पहरे को,
जहां निखरा हुआ मंज़र कर रहा इंतज़ार,
तुझे देने पल सुनहरे को।
ना डर अपनी हार से ना किसी के प्रहार से ,
ख़ुद को बना मज़बूत इतना,
के आसमान भी डरे तेरी इक दहाड़ से।
हार ली हर बाज़ी तो क्या,
फिर ज़िद्द कर और बस तयार हो जा।
छूटा था जहां शुरू कर फिर वही से,
बाज़ी भी हो जाये तेरी राज़ी की,
ख़ुद को बुलंद कुछ ऐसा कर जा।
कर उजागर अपने वजूद को,
ये हुनर ना तू ऐसे ग़वा।
याद रखे तुझे जो दुनिया,
कुछ ऐसा कर जा।
हो आज़ाद इन ग़म की बेड़ियों से,
तू विश्वास की ऐसी मशाल जगा।
बिना किसी के साथ के ,
तू ख़ुद की एक पहचान बना।
ना डर, ना फिसल, ना कदम तेरे डगमगायें,
हो कर निडर, बुलंद,
ख़ुद की खोज पर तू निकल ऐसे,
के आसमान भी तेरे साथ हो जाये।
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