By Chandan Bisht

शहरों के चौराहे पे
अजब गजब सी दुनिया देखी, सड़कों के किनारों पे।
कोई खाना यूं ही फेंक रहा,
कोई खाने को है तरस रहा।
है सवाल आंखों में बस
क्यों टूटे छतों से ही आसमान है बरस रहा।
शहरों के चौराहे पे
अजब गजब सी दुनिया देखी, सड़कों के किनारों पे।
सही गलत में फर्क है क्या,
सब कुछ ही है दिख रहा।
पर जब कुछ करने की बारी आयी,
मैंने सब को भीष्म सा बेबस पाया है
खुशहाल जमीनों पर क्यों,
खंडर पड़ी इमारतों की छाया है।
शहरों के चौराहे पे
अजब गजब सी दुनिया देखी, सड़कों के किनारों पे।
पल भर जो रुकना पड़े चौराहों पे,
मैंने सबको परेशान होते देखा है।
रुकी पड़ी है जिंदगी जिनकी,
उनको हंसते देखा है।
शहरों के चौराहे पे
अजब गजब सी दुनिया देखी, सड़कों के किनारों पे।
ये दुनिया है एक सी,
अभी तो बस यही ज्ञान है।
वो तो है सरल सीधे बच्चे,
उनको क्या पहचान है।
शीशे की एक अदृश्य दीवार बीच में,
भविष्य दोनो और खड़ा है।
एक बाहर को देख रहा है ,
एक अंदर को झांक रहा है।
शहरों के चौराहे पे
अजब गजब सी दुनिया देखी, सड़कों के किनारों पे।