By Brahm Dayal
आज जब मैं देखता हूँ तुम्हे बड़ा होते हुए,
एकाएक मेरे दिल में ख्याल आता है कि
मैं ही तो हूँ जो तुझमें बड़ा हो रहा हू||
हुआ करता था जैसा मैं कभी|
दिखाई तो देती है तू वैसी अभी||
दिखाई देता है वही अल्लड़पन, मासूमियत और दिमागी पैनापन।
एहसास कराती है लोगो को मेरे जैसा ही अपनापन।।
ऐसी अनुभूति को जब अनुभव करता हूँ, तो सोचता हूँ कि
सोने सा कसौटी पर खरा हो रहा हूँ।
मैं ही तो हूँ जो तुझमें बड़ा हो रहा हूँ।।
पायी थी मैंने भी काम उम्र में लोगो की तालिया
तू भी पा रही है, तो चोचता हूँ कि
गिरा - पड़ा सा मैं फिर से खड़ा हो रहा हूँ|
मैं ही तो हूँ जो तुझमें बड़ा हो रहा हूँ ||
हैं कमियाबियों के पहाड़ तुझे भी मेरी तरह चढ़ना,
ऐसे ही पहाड़ों पर चढ़ते हुए देखता हूँ तो सोचता हूँ कि
कहा मैं अभी बूढ़ा हो रहा हूँ!
मैं ही तो हूँ जो तुझमें बड़ा हो रहा हूँ ||
सतायेंगे लोग तुझे भी मेरी तरह
जब शालीनता से उनको मूक जवाब दे रही है, तो सोचता हूँ कि
मैं फिर उनकी रह का रोड़ा बन रहा हू।
मैं ही तो हूँ जो तुझमें बड़ा हो रहा हू।।
मैं जानता हूँ, कोई मूल्ये नहीं है तेरी-मेरी सफलताओं का उनकी नज़रों मे।
आपने आप को आमूल्ये बना रही है तू तो सोचता हूँ कि
मैं सूखा सा वृक्ष फिर से हरा हो रहा हू।
मैं ही तो हूँ जो तुझमें बड़ा हो रहा हू।।
आज जब मैं देखता हूँ बड़ा होते हुए,
एकाएक मेरे दिल में ख्याल आता है कि
मैं ही तो हूँ जो तुझमें बड़ा हो रहा हू|