Bikharane Na Dena ..... – Delhi Poetry Slam

Bikharane Na Dena .....

By Anita Tripathi

बिखरने न देना मुझे कांचों की तरह
चुभना नहीं आता टूटे टुकड़ों की तरह
समेटती हूं अंधेरों को लौ की तरह
रखना मुझे अपने होंठों पर हंसी की तरह

महकती हूं मैं, उन फूलों की तरह
बिखरें भी तो सजें बागों की तरह
हंसते रहें मैय्यत पर भी सेजों की तरह
रखना अपने दिल में मुझे खुशबूओं की तरह

जोड़ती हूं मैं रिश्तों को लफ़्ज़ों की तरह
सवर जाएं तो लगें मोतियों की तरह
भरें जख्मों को भी मरहमों की तरह
लिखना मुझे अपनी यादों में वादों की तरह

हौसले देती हूं मैं ख्वाबों की तरह
खताएं करती नहीं नींदों की तरह
जागती हूं दिलों में हसरतों को तरह
रखना मुझे अपनी बाहों में दुल्हनों की तरह

 


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