सोलह सेकेंड – Delhi Poetry Slam

सोलह सेकेंड

By Bhavna Kothari

कानो को सुनाई देता नहीं 
स्वयं की अंतरात्मा का नाद 
हम सिमट रहे है निरंतर 
तुम मर लो या जी लो 
कुछ कहना है तो कह लो 
पर संछिप्त रहो , त्वरित रहो 

जो भी किस्सा है १६ सेकंड में सुना दो , 
बेहतर यह होगा  कि दिखा दो- 
ग्रंथों के सारांश
संक्षेप में पुराण , 
भ्रमित हुआ सत्य 
जल्दी में बघारा ज्ञान 
साज़/सामान

तुम्हारे स्वर , सुर, प्रेम, पीड़ा, संवेदना, करुणा 
सब स्क्रॉल कर ली 
दुनिया भर की टूटी फूटी
झूठी सच्ची मक्कारी 
ऐयारी देख ले , फिर रोएँगे
दूर खड़े है ख़ुद से ही ।

वह दिन नहीं रहे 
कि कोई पृष्ठ पढ़ लें पूरा 
हुआ करे-
अनूठा, अभिनव, नितांत मौलिक 
असीम और सृष्टि की तरह दीर्घ !

कहानियाँ असहनीय है 
कहानियों के किरचे 
डब्बे में बंद करके लाओ , रख दो कोने में 
बाद में सोचा जाएगा ।
कविताएँ सुनना नहीं है, 
सुनाई देतीं नहीं है 
स्क्रीन के  6 इंच में
समाधान है- चिंता, बैचेनी, व्याकुलता और 
गहराते एकांक का 

सब भूल ही गए - 
कि तुम बहुत देर से खड़े हो !
इंतज़ार कर रहे हो,
की तुम्हें पहचान लें 
किसी को नहीं पता करना तुम कौन हो
सत्य हों, शाश्वत हों , अंत हो या आरंभ 
एक रील भेज दी है तुम्हें , 
तुम भी एक रील भेज दो 
एक अलहदा सृष्टि बन गई है 
अगर तुम भी संलग्न होना चाहो 
तो करो लाइक एंड सब्सक्राइब ।


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