By Bhakti Jadhav
खुन से लथपथ वादियों में
चीखें गूंज रही है फिर
काप उठा हर दिल आज
खामोशी बयान करे, तेरे दर्द की आवाज़
जो जन्नत की ज़मीन थी कभी
जहन्नम बन गई ये अभी
कब तक रहे हम बेज़ुबान
कब तक बली चढ़े मासूम इंसान?
हस्ती खेलती थी ये सड़कें
आज डर के साए में क्यों जिए?
अपने संसार का आरंभ
कोई दर्द से भला कैसे करे?
प्यार से घर बसाने के
जहाँ थे सपने देखे
वहाँ अपना घर उजड़ते
कोई कैसे देखे?
गोलियों की आवाज से
काप उठी ये भूमि
घर के चिराग़ों से
उनकी जिंदगी है छीनी
मासूम चेहरे लहू मैं
आँखों में है सवाल
“क्यों हुआ ये सब ? ”
जवाब न दे सका काल
कोई आँसू ना अनसुना हो
न व्यर्थ कोई काया
अब नहीं सहेंगे, नहीं झुकेंगे
ख़तम करेंगे ये आतंक का साया
ख़तम करेंगे ये आतंक का साया
ख़तम करेंगे ये आतंक का साया I