By Bansidhar Gupta
रे मन चिड़िया सा बन
जोड़ी बना एक के साथ
निभा जीवन भर !
जोड़कर तिनका तिनका
जरुरत भर का बना
घोंसला
गगनचुम्बी अट्टालिका तानकर न तन
रे मन…….
दे दाना दे पानी
चूजों को बढ़ने दे खिलने दे
लादकर अपने सपने
अड़चन न बन
रे मन……
दे उन्हें विहग आकाश
दूरियां क्षितिज तक की
उड़ने दे सात महाखंड या सागर सात
शिथिल कर दे पंख
आसुओं का , भावनाओं का
कर्तव्यों का पहाड़ न बन
रे मन……
हुआ काम बिखरने दे तिनके को तिनके में मिलने दे
तज घोंसला चलता बन
साधू सा बन
रे मन चिड़िया सा बन
बहुत सही और सटीक. बच्चों को जीने दो अपने तरह से. बोझिल न करो अपनी अपेक्षाओं से. वीतराग बनो. आपने तो अक्षरशः जिया यही सब कुछ.
एक दम अपने जीवन की ही कविता लगती है।बड़ी सुंदर अभिव्यक्ति है।