रे मन चिड़िया सा बन – Delhi Poetry Slam

रे मन चिड़िया सा बन

By Bansidhar Gupta

रे मन चिड़िया सा बन

जोड़ी बना एक के साथ
निभा जीवन भर !

जोड़कर तिनका तिनका
जरुरत भर का बना
घोंसला
गगनचुम्बी अट्टालिका तानकर न तन
रे मन…….

दे दाना दे पानी
चूजों को बढ़ने दे खिलने दे
लादकर अपने सपने
अड़चन न बन
रे मन……

दे उन्हें विहग आकाश
दूरियां क्षितिज तक की
उड़ने दे सात महाखंड या सागर सात
शिथिल कर दे पंख
आसुओं का , भावनाओं का
कर्तव्यों का पहाड़ न बन
रे मन……

हुआ काम बिखरने दे तिनके को तिनके में मिलने दे
तज घोंसला चलता बन
साधू सा बन
रे मन चिड़िया सा बन


2 comments

  • बहुत सही और सटीक. बच्चों को जीने दो अपने तरह से. बोझिल न करो अपनी अपेक्षाओं से. वीतराग बनो. आपने तो अक्षरशः जिया यही सब कुछ.

    Sudha Yadav
  • एक दम अपने जीवन की ही कविता लगती है।बड़ी सुंदर अभिव्यक्ति है।

    Archana

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