तो कुछ और बात होती – Delhi Poetry Slam

तो कुछ और बात होती

By Babita Prajapati

घर की छत पे
खूब लगा लो पौधे हरियाली
घर के आँगन मे लगे
पेड़ों की कुछ और बात थी।
झूले तो सुहाते थे
आम नीम के पेड़ों पर
वो हिचकोले खाकर
झूले झूलाना
कुछ और बात थी।
धूप भी घर के
कोने कोने जाती थी
बड़े से आँगन मे
माँ, मसाले सुखाती थी
वो चूल्हे की रोटी
वो पत्थर पे पीसी चटनी
सब मिलजुल कर खाना
कुछ और बात थी।
धूल भरी कच्ची सड़क थी
सबसे मुलाकातें बेधड़क थी
राह चलते भी
अपनों का मिल जाना
कुछ और बात थी।
आँगन मे फूलों की फुलवारियां थी
घर मे बच्चों की किलकारियां थी
घर मे तुलसी के क्यारे लगाना
कुछ और बात थी।
तारों से भरा गगन था
बड़ा कोमल सा बचपन था
चन्दा देख देख
परियों की कहानी सुनाना
कुछ और बात थी।
पहले का वो ज़माना
कुछ और बात थी।
🌺🌴बबिता प्रजापति "वाणी "🌴🌺
(झाँसी )


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