उम्मीद – Delhi Poetry Slam

उम्मीद

By Avnish Anand

लगा नहीं था बसर यूँ भी ज़िंदगी होगी
जिया करेंगे मगर रूह अजनबी होगी
यहाँ तो हम हैं ही खानानशीं हमारा क्या
वहाँ तो आप को महफ़िल पुकारती होगी
कभी वो रात उदासी दिखे चरागों में
कभी ये रात की खुशियों में तीरगी होगी
कहीं वो रोज़ बदलते हुए हसीं चेहरे
कहीं वो सोच जो सड़कों पे चीखती होगी
हुआ कभी की ये दिल भी बहल गया लेकिन
ज़रा ज़रा सी तो आँखों में तिश्नगी होगी
धुआँ धुआँ सा है कमरा हैं मेहरबाँ साँसे
रुकी रुकी सी ये धड़कन भी आख़िरी होगी
निकल चुके हैं क़िसी रहगुज़र पे हम शायद
लिये ख़याल कि राहों में रौशनी होगी
न ये ज़मीं ही है तन्हा न आसमाँ ग़मगीं
कि आसमाँ की ज़मीं से ही दिलकशी होगी
है इस क़दर ये नुमाइश की पैरवी की अब
दबी दबी किसी कोने में सादगी होगी
ये तल्खियां की जो रुसवा किये गई हमको
इन्ही से 'आग' बचे जब तो आशिक़ी होगी


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