पहाड़ – Delhi Poetry Slam

पहाड़

By Avani Shrivastava

 

पहाड़
तुम बढ़ रहे हो
मेरी घटती बढ़ती परेशानियों के साथ
तुम बढ़ रहे हो...

पहाड़ तुम बढ़ रहे हो
मन में रोज़ गिरते उठते
ज्वार भाटाओं के साथ
तुम बढ़ रहे हो...

पहाड़ तुम बढ़ रहे हो
मेरी आती जाती आकांक्षाओं के साथ
तुम बढ़ रहे हो...

पहाड़ तुम बढ़ रहे हो
कभी कमजोर,कभी दृढ़ होते मेरे लक्ष्य के साथ
तुम बढ़ रहे हो...

पहाड़
तुम इसी तरह बढ़ते रहना...
क्यूंकि
तुम्हारी आसमान छूने की इक्षा
बल देती है मेरे लक्ष्य को भी...
और शायद
छू लूं आसमां
मै भी कभी....

( ये कविता उस पहाड़ को समर्पित जो मेरी खिड़की से दिखता है)



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