By Yogender K Singh

नौकरी का था जब मैं गुलाम,
दुनिया करती थी मुझे सलाम,
मेहनत से सींचे जब सपने,
खो गए जो होते थे अपने,
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत,
लहराएगा फिर से परचम,
बोता जा मेहनत के बीज।

नौकरी का था जब मैं गुलाम,
दुनिया करती थी मुझे सलाम,
मेहनत से सींचे जब सपने,
खो गए जो होते थे अपने,
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत,
लहराएगा फिर से परचम,
बोता जा मेहनत के बीज।