By Atharva Yerawar
सतयुग के आरंभ में पड़ा धर्म में अकाल
धरा की रक्षा के लिए आया मत्स्य अवतार
मनु को मिला वरदान साथ ही धर्मरक्षा का काम
बनाई एक नौका जो कहलाया जीवो का धाम
अमृतमंथन आरंभ हुआ मन का मंथन भी जरूरी था
देव-असुरो के अहम का विष ग्रहण किया शिव ने जो था
अमृत बटा संसार में हलाहल मेरे शिव के हिस्से आया
धर्म रक्षा हेतु नारायण का ये अवतार कूर्म कहालय
धरा की रक्षा के लिए वराह अवतार के द्वारा हिरण्याक्ष का अंत हुआ
अपने भक्तों के रक्षा हेतु नरसिंह द्वार हिरण्यकश्यप का संघार हुआ
तीन पग भूमि का अधिकार दानवीर बली से था मांगा
धर्म रक्षक का ये अवतार वामन है कहलाता
स्वर्ग और पाताल को दो पग में जिसने नापा
बली कहता उनसे कि तिसरा पग मेरे माथे सजाओ पद्मनाभा
परशुधारी जमदग्निसुत परशुराम कहलाते हैं
धर्म के खातिर अधर्मी क्षत्रियों का यहीं तो नरसंघार करते हैं
त्रेता के युग पुरुष श्री रामचन्द्र कहलते हैं
संकट मोचन के हृदय श्रृंगार यहीं तो बन जाते हैं
प्राण की चिंता न कर प्रण की चिंता करते हैं
मर्यादा में रहना हमें यहीं तो सिखाते है
अधर्म के खातिर हुआ निर्वस्त्र, धर्म का संसार
पार्थसारथि बने जब माधव, हुआ धर्म का उद्धार
द्वापरयुग के स्वामी वासुदेव कृष्ण कहलाते हैं
मर्यादा मे रखना अधर्मियों को, यहीं सिखाते हैं
नारायण का एक स्वरूप सुगता बुद्ध के नाम से विख्यात हुआ
वेद,धर्म,अध्यात्म का सार बोध गया से प्रचार हुआ
कलियुग के अंत में कल्कि अवतार का जन्म होगा
धर्म स्थापना हेतु पुन्हा नवयुग का निर्माण होगा
मत्स्य,कूर्म,वराह,नरसिम्हा,वामन,परशुराम,श्रीराम,कृष्ण अवतार हुआ पूर्णः
कलियुग के अंत में धर्मरक्षा का वचन करेगा कल्कि अवतार संपूर्णः