एक सफरनामा – Delhi Poetry Slam

एक सफरनामा

By Asmita Desai


नये चेहरे नया शहर, के ओर मैं बढ़ा जा रहा था 
खिड़की के पास बैठे दौड़ते नज़ारे देखे जा रहा था |

गरम चाय-कचोरी लेने मैं मुड़ा
आस्वाद लेते लेते गुम होने फिर खिड़की के तरफ मुड़ा |

एक मीठी आवाज सुनी ‘एक चाय-कचोरी इधर’
दरवाजे पे खड़ी वो जुल्फे सवारती उधर |

चाय कचोरी का मैं लुफ्त उठा रहा था
किताब के पीछे मेरा चेहरा छुपा रहा था |

सोचा सेल्फी के बहाने मैं भी जाऊ दरवाजे पे
रोक लिया खुद को मैंने मौके पे |

बैठते वक़्त वो हसी, बोली ‘आजाओ जल्दी ’
मैं किताब के पीछे छुपा, बना भीगी बिल्ली |

दौड़ के फिर कोई उसकी तरफ बढ़ा
जाकर उसके गोद में चढ़ा |

मेरी नादानी जानके मैं मन ही मन मुस्कुराया
किताब के पन्नो ने फिरसे मेरा ध्यान पाया |


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