By Asmita Desai

नये चेहरे नया शहर, के ओर मैं बढ़ा जा रहा था
खिड़की के पास बैठे दौड़ते नज़ारे देखे जा रहा था |
गरम चाय-कचोरी लेने मैं मुड़ा
आस्वाद लेते लेते गुम होने फिर खिड़की के तरफ मुड़ा |
एक मीठी आवाज सुनी ‘एक चाय-कचोरी इधर’
दरवाजे पे खड़ी वो जुल्फे सवारती उधर |
चाय कचोरी का मैं लुफ्त उठा रहा था
किताब के पीछे मेरा चेहरा छुपा रहा था |
सोचा सेल्फी के बहाने मैं भी जाऊ दरवाजे पे
रोक लिया खुद को मैंने मौके पे |
बैठते वक़्त वो हसी, बोली ‘आजाओ जल्दी ’
मैं किताब के पीछे छुपा, बना भीगी बिल्ली |
दौड़ के फिर कोई उसकी तरफ बढ़ा
जाकर उसके गोद में चढ़ा |
मेरी नादानी जानके मैं मन ही मन मुस्कुराया
किताब के पन्नो ने फिरसे मेरा ध्यान पाया |