माँ उस दिन तेरी एक ना चली – Delhi Poetry Slam

माँ उस दिन तेरी एक ना चली

By Ashutosh Bohra

माँ उस दिन तेरी एक ना चली
चाहत तो तेरी बहुत रही होगी इस ज़िन्दगी को थोड़ा और जीने की, लेकिन वो दिन तेरा ना था माँ, इसिलिये तेरी एक ना चली
हमेशा अपने पैरों पे चलने वाली, आज वापस घर मेरे हाथों में आई
घर पे तू ज़मीन पे सोयेगी, ये तय मैनें किया
तेरा सर उत्तर दिशा में रहेगा, ये तय पापा ने किया
तू साड़ी कौनसी पहनेगी, ये तय तेरी बेटी ने किया
तेरा श्रंगार कैसा होगा, ये तय तेरी बहु ने किया
तेरी अंतिम विदाई इस घर से कैसी होगी, ये सब तय परिवार वालों ने किया
माँग में सिन्दूर भरा पापा ने, वो तेरी ललाट पे बिखेर दिया
बुरा तो तुझे लगा होगा, पर उस दिन तू पापा को कुछ ना कह पाई
जिस घर में तू महारानी की तरह राज किया करती थी, उस घर में आज तेरी एक ना चली
याद है ना माँ, जब मैं तेरा ड्राईवर बना करता था और तू मेरे बगल वाली सीट पे ठसक से बैठा करती थी
मेरा हाथ स्टियरिंग पे होता था और बातें हमारी लम्बी हुआ करती थी
माँ ड्राईवर तो उस दिन भी मैं तेरा बना था, लेकिन सफर की मंजिल और गाड़ी दोनों ही अलग थे
हर बार की तरह तू मेरी बगल वाली सीट पे नहीं, मेरे कंधों पे थी
तू बांस की सीढ़ी पे लेटी थी और मेरा हाथ स्टियरिंग पे नहीं, उस बांस पे था
लम्बी बातें करने वाली उस दिन एकदम शांत थी,
ड्राईवर तेरा बेटा था इसिलिये तेरे ठसकपन में कोई कमी ना थी
माँ ना चाहते हुये भी, तेरी मंजिल पे तुझे छोड़, तेरे बिना हमें वापस आना पड़ा
माँ उस दिन तेरी एक ना चली


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