By Dr Ashita Singh
अपनी बेटी की हल्की सी खरोंच पे जो तुम्हे रोना आया है
तुम्ह अंदाज़ा भी नहीं है उस बाप के दर्द का जिस्की बेटी को जिंदा जलाया है
अपनी बेटी की शादी का सपना आँख मैं उसने भी सजाया है
आज वो आंखें इंसाफ की भीख मांगती है ये एहसास उसे इस कानून ने कराया है
हां माना खडूस है ज़रा सा क्यूंकी दरता है वो इस जमाने से
मगर बुरी नजरों से बचाकर सर उठाना भी उसी ने सिखाया है
आज रो रही है वो बेटी आसमान से अपने पिता के आँसू देख
जो पिता कंधे पे उठा लेता था अपनी लाड़ली को आज दुनिया ने उसे कमजोर दिखाया है
जल रही है वो बेटी आग की लप्टों मै लिपट कर
उस्की चीखों ने उस बाप को बेटी होने का गम कराया है
और मर गयी थी कोक मै जिस्की बेटी उस दिन
आखों में आँसू लिए मन ही मन वो बाप भी आज मुस्कुराया है
मांग रहा था वापीस जिस्को चीख-चीख कर वापीस
वह आज सलामत है ऊपर, इस बात से अपना मन उसने आज बहलाया है
आसान नहीं है एक बेटी का बाप होना
आज फिर जमाने ने हर एक बाप को बताया है
(Pov-I wrote this poem after the heartbreaking incident of Hyderabad
Where a veterinary doctor was raped and burnt alive
It's for all fathers who love their daughter and love having a daughter but are at the same time scared to leave their little piece of heart in this despicable society where such incidents and many more takes place)