By Ashima Sharma Pahari

अंधेरे में हल्की रोशनी का छलावा, खुल गया,
मुरझा गया वो फूल जो बदकिस्मती से खिल गया।
कौन-कौन से रंग बाकी हैं ज़िंदगी के देखने को,
अब तो ज़िंदगी में ज़िंदगी का ना होना
खल गया।
क्यों सब कुछ होना पर कुछ ना होना,
एहसास ये ज़ख्मों पे नमक छिड़क गया।
अंधेरे में हल्की रोशनी का छलावा खुल गया,
छलावा खुल गया।