भिखारी – Delhi Poetry Slam

भिखारी

By Asha Bhardwaj

तुम्हारा सुख और दुख दुनिया से है, दुनिया के भिखारी तुम
क्या उड़ोगे सच के आसमान में, झूठ के व्यापारी तुम
न जाने क्या ढूंढ रहे हो, दुनिया के खजाने से
हर पत्त्थर को हीरा माने बैठे, दुनिया के संकीर्ण पैमाने से

पल पल दुनिया को सहते हो, समाज का हवाला देते हो
प्रचलित को सर पर रखा है, अप्रचलित से कितना डरते हो
आश्वासन की भीख मांगते, बस झूठ को जानते हो
खुद को राजा समझे बैठे, पर तुम दुनिया के मंगते हो

जो जितना बड़ा भिखारी है, वो उतना मीठा बोलेगा
सबकी चाटुकारिता में लग के, मंगता बनके सबको झेलेगा
समाज की खींची रेखा पर, आत्मविश्वास से डोलेगा
दूसरों के आगे चेहरा बदलकर, मन के कीचड़ में रोलेगा

हर रास्ता जिसमें संघर्ष नहीं, वो खाई को जाता है
दुनिया तो बदलती रहती है, धूल हवा में उड़ाता है
वो दुनिया का राजा है, जो अपने मन पर राज करे
समन्दर तेरे मन में है, दुनिया से क्या फरियाद करे

जब तक दुनिया की ओर मुख मोड़ा है, तब तक तू भिखारी है
जब तक पसीजने में लगा है, तब तक ही लाचारी है
जब तू अंतर्मुखी हो गया, राजयोग आ जाएगा
मृत काया से ऊपर उठकर, जीवन सफल हो जाएगा


4 comments

  • “हर रास्ता जिसमें संघर्ष नहीं, वो खाई को जाता है…”
    ……..
    “वो दुनिया का राजा है, जो अपने मन पर राज करे…”
    बहुत सुंदर कविता….गहरे अर्थ के साथ….
    वास्तव में…..
    जो स्वयं पर राज्य करता है (स्वयं के मन पर, स्वयं की कर्मेन्द्रियों पर….)….वही सारे संसार पर राज्य कर सकता है….

    BK Shivi Singh
  • Very thoughtful

    Reeti Singh
  • Samaaz ki taydeh sachae ko vayak karti sidhi aur thekhee kavita

    Dr. Mahipal Ranot
  • Very thought provoking lines. Go inside and you will see heaven…..

    Charu

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