क्यूँ ना कभी हम खुद से यह सवाल करते है? – Delhi Poetry Slam

क्यूँ ना कभी हम खुद से यह सवाल करते है?

By Aryan Parnandiwar 

क्यूँ हम ज़िंदगी जीना मुश्किल बनाते है?
क्यूँ हम छोटी-छोटी बाटो पर बुरा मान जाते है?
क्यूँ हम उठाते है दूसरों के बर्ताव पर सवाल,
जब हम खुद पर सवाल उठाने से डरते है?

क्यूँ ना हम कभी खुद से यह सवाल करते है?

क्यूँ हम परेशानी के वक्त ही भगवान को याद करते है?
क्यूँ मेहनत करने के बजाए मन्नते माँग लिया करते है?
क्यूँ जिनसे जीते-जी सीधे मुँह बात नहीं की,
उनको, गुज़रने के बाद, बड़े प्यार से याद करते है?

क्यूँ ना हम कभी खुद से यह सवाल करते है?

क्यूँ हम बेज़ुबान जानवरो के साथ ऐसा सलूक करते है?
क्यूँ इंसान होकर इंसानियत खो देते है?
क्यूँ हम हर प्रार्थना मेही सिर्फ़ भगवान को याद करते है?
और उन माता-पिता का ज़िक्र भी नहीं करते,
जो ऊपर भी हमारी ग़लतियों की ख़ुदा से माफ़ी माँग रहे होते है?

क्यूँ ना हम कभी खुद से यह सवाल करते है?

क्यूँ हम थोड़ा कुछ पाकर इतने अभिमानी हो जाते है?
क्यूँ हम थोड़ी सी ज़िंदगी दूसरों के लिए नहीं जी पाते है?
क्यूँ भगवान को ढूँढने की लिए हम करोड़ों खर्च करते है,
जब दींन दस रुपये मे ही दुआयें दे जाते है?

क्यूँ ना हम कभी खुद से यह सवाल करते है?

क्यूँ हमें दूसरों की ख़ुशी में ख़ुशी नहीं मिलती,
पर खुद के दुःख में सब साथ चाहिए होते है?
क्यूँ हर उस व्यक्ति की ज़िंदगी कामयाब नहीं होती,
जिसने बोहोत पैसे कमा लिए होते है?

मैं मानता हूँ कि पैसों से ख़ुशी नहीं मिलती,
बस कुछ ग़म दूर हो जाते है,
क्यूँ ना हम दूसरों के कुछ ग़म दूर करे?
आज खुद से यह सवाल करे |


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