By Arushi Saxena
ज़िंदगी शतरंज का खेल है यारो,
यहाँ बस मोहरे हम सब हैं सारे।
किधर चलेंगे, कहाँ जाएंगे,
ये फैसले नहीं हैं हमारे।
ज़िंदगी तुम्हारी है, पर
इसे चलाने वाला कोई और है।
तक़दीर की लकीरें हाथ में सही,
मगर डोर किसी और के हाथों की डोर है।
किस मोड़ पर जाएगा प्यादा,
ये खुद भी नहीं जानता।
क्या अंज़ाम होगा सफर का,
यहाँ कोई नहीं पहचानता।