By Arun Kumar Srivastava

हे अशांत! कैसी अशांति तेरे मन में,
इस अशान्ति को प्रगति रूप दे,
नाम कमा ले जीवन में।
*जिस अशान्ति से फटती धरती धड़कन होती अंतस्तल में,
उस अशान्ति को देखा मैंने एक छोटे से अंकुर मन में,
उठने को उद्वेलित कितना उन्माद भरा निज तन में,
तरु विशाल बन जाता है वह शनै-शनै कालान्तर में,
पुष्पित होकर सुरभि नयी वह जग में है भर देता,
पथ में व्याकुल व्यथित पथिक को वह छाया है देता,
सद्ह्रदया अपने आंचल में मीठे फल भर लेता,
नहीं सुनहरा आज, सुनहरा कल भी जग को देता।
*यह अशान्ति क्यों कैसी है, मन मूढ़ समझ ले,
इसका आशय बहुत बृहत है गूढ़ समझ ले,
यह अशान्ति भर जाती है बस चेतन मन में,
पंख विहीन क्यों मानव है इस जागृत तन में,
प्रश्न कोई ऐसा ही मन में घर जाता,
आखिर मानव मन में कब तक क्रांति छुपाता,
कर बैठा परिवाद नियंता से वह प्रस्तर,
बना लिया वायुयान बना उड़ने का स्तर।
*इस अशान्ति का रूप एक अमरत्व भरा है,
प्रमुदित जिससे हुआ गगन भी और धरा है,
गति ही जीवन, जीवन गतिमय, सत्य यही है,
फिर तेरे जीवन में ही क्यों प्रलय नहीं है,
दिशायुक्त कर जीवन गति को सदिश बना ले,
इससे पहले जीवन गत हो प्रगति कमा ले,
गति से ही तो जीवन में जीवत्व भरा है,
इस अशान्ति का रूप यही अमरत्व भरा है।
*इस अशान्ति ने ही तो पौरुष का ज्ञान कराया,
आलोकित जीवन करके तम को है दूर भगाया,
इस अशान्ति ने धरती पर कितने संधान किये हैं,
मानव के कल्याण हेतु उद्यम उत्थान किये हैं,
इस अशान्ति से ही तो अंतस का दीप्त दिया है,
सागर में उठती लहरों का भी रूप लिया है,
अमर वही हो जाता है वह जन-जीवन में,
भर जाती अशांत चेतना जिसके मन में।
भर जाती अशांत चेतना जिसके मन में।।
The poem “Ashant Chetana” is a one of the best inspiring poems of my life which motivated me and you too.