By Archana Tirkey

कोख में तुम्हारी मुझे जीवन मिलता
रक्त से अपने तुम मुझे सींचती
श्वास तुम्हारी मुझे सांसे देती
तरंगित होती मुझमें भावनाएँ तुम्हारी
तुम हँसती तो मैं हँसती,
तुम रोती तो मैं रोती माँ।
क्या मैं हूँ अवांछित ?
कन्या होना कोई अभिशाप नहीं
आभा बिखेरते हर पुष्प ही
फिर भ्रूण-हत्या ही अकारण अंत क्यों मेरा ?
मेरा क्या कसूर है
मुझे मत मारना माँ।
चलना सीखूँगी ऊँगली पकड़कर तुम्हारी
देखूँगी इस संसार को आँखों से तुम्हारी
छाया – सी तुम्हारी पीछे – पीछे चलूँगी
सुख – दुःख में तुम्हारे साथ रहूँगी
निहित तुझमें मैं तुम्हारी अंश हूँ
नया जीवन मुझे दे देना माँ।
बात लोगों की तीर – सी चुभेगी
सह लेना सब मेरे लिए
स्वजन भी बन जाते हैं भक्षक (बैरी)
ढाल-सी तुम मेरी रक्षा करना
जी लेना मेरे लिए तुम भी
नया जीवन मुझे दे देना माँ।
बहुत ही सुंदर, हृदय को छू लेने वाली रचना…
Mam keep up the good work.