By Archana Gupta
हृदय की विदारक व्यथा को,
वर्षों की कुण्ठित कथा को,
जंजीरों में जकड़ी प्रातः को,
जलधारा में प्रवाहित कर दो।
सरिता की समरसता को,
चपला की चंचलता को,
भाषा की मृदुलता को,
नवाचार में समाहित कर लो।
विषयों के विकारों को,
दूषित मन के विचारों को,
अमर्यादित संस्कारों को,
जलधारा में प्रवाहित कर दो।
वायु की निरंतरता को,
श्रम की तत्परता को,
भावों में विनम्रता को,
नवाचार में समाहित कर लो।