शोर – Delhi Poetry Slam

शोर

By Aparna Wasnik 

एक शोर सा कहीं सुनाइ दे रहा है
कानों में गूंजता, कभी सता रहा है
मेरी बेखयाली को गलत बता रहा है
एक रूह की पुकार को जैसे मिटा रहा है

किसी का बयान, किसी की सच्चाई
किसी की जरुरत, किसी की बेवफ़ाई
इन सब की आवाज़ों की धुन बन रहा है
एक रूह की पुकार को जैसे मिटा रहा है

एक प्यार की दास्तां कोई सुना रहा है
कोई दोस्ती की कसम खा रहा है
मुख्य समाचारों में भी वही छा रहा है
एक रूह की पुकार को जैसे मिटा रहा है

क्या थी हकीकत? क्या है दिखावा?
बुरी थी वो नियत, या सच्चाई का दावा?
क्या शोहरत की कीमत वही चुका रहा है?
एक रूह की पुकार को जैसे मिटा रहा है

कोई राजनीति में इतना गिर गया है
कि इंसानियत ही को झुका रहा है
इस शोर की गूंज में इंसान खो रहा है
एक रूह की पुकार को जैसे मिटा रहा है


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