हाँ, मैं कृष्ण हूँ – Delhi Poetry Slam

हाँ, मैं कृष्ण हूँ

By Anushka Malik 

हाँ, मैं कृष्ण  हूँ
मैं उत्तर हूँ,
मैं प्रश्न भी।
मैं सक्षम हूँ —
मैं श्रेष्ठ भी।

मैं काल हूँ कंस का,
सार हूँ विध्वंस का।
मैं द्रौपदी की पुकार हूँ,
मैं भागवत का सार हूँ।
शिशुपाल का भी काल हूँ,
और यशोदा का लाल हूँ।

मैं राधा की प्रीत हूँ,
बाँसुरी का मनमोहक गीत हूँ।
मैं देवकी का दिव्य पुत्र हूँ,
प्रेम का मधुरतम सूत्र हूँ।

मैं विरह हूँ,
मिलन का गीत भी।
मैं सुंदर हूँ,
विकराल भी।
मैं युद्ध की हुंकार हूँ,
भक्तों का सौम्य उपहार हूँ।

मैं कुब्जा की आख़िरी आस हूँ,
मीरा की छलकती प्यास हूँ।
मैं सबके दिल के पास हूँ,
राधे के प्रेम का दास हूँ।

मैं बीता हुआ पल हूँ,
आने वाला कल हूँ।
मैं ही योद्धा का बल हूँ,
हर संकट का सरल हल हूँ।

मैं यौवन के काजल में,
गोपी की पलकों की बात हूँ।
मैं मन की भक्ति-प्रेम हूँ,
मैं सरयू की सुंदर रात हूँ।
मैं तुलसी सा सौगात हूँ,
हर पल तेरे साथ हूँ।

मैं शेर की दहाड़ में,
भक्ति की आग हूँ।
मैं आँखों के जल में,
प्रेम का राग हूँ।
मैं मेघ की गर्जन में,
प्रकृति की तर्जन में,
मैं सुरक्षा का भाव हूँ,
भावसागर की नाव हूँ।

मैं पंछियों की चहचहाहट में,
मैं तूफ़ान की पहली आहट में,
मैं बच्चों की मुस्कुराहट में।

मैं सूरज की गर्मी में,
मैं फूलों की नरमी में,
मैं रंग हूँ, बसंत हूँ,
मैं ही योद्धा, मैं संत हूँ।

मैं पूजा में, मैं भक्ति में,
मैं नरसिंह की शक्ति में,
मैं दारुण करुणा रूप में,
मैं सेवक के स्वरूप में,
मैं हर जीव के मन में हूँ,
मैं धरती के हर कण में हूँ।

मैं शस्त्र भी,
मैं शास्त्र भी,
मैं प्रेम रूपी अस्त्र भी।
सुदामा के चरणों की धूल हूँ,
यशोदा की ममता का फूल हूँ।

नदियों की अविरल धारा हूँ,
मैं नभ का अनंत किनारा हूँ।
मैं शाम का पहला तारा हूँ,
दुख से कभी न हारा हूँ।

मैं रणछोड़ भी, रणधीर भी,
तेरा सखा — अधीर भी।

मैं तलवारों की धार हूँ,
अधर्म का संहार हूँ।
रथ का हूँ सारथी,
युद्ध का हूँ महारथी,
मैं योद्धा वीर भारती,
मैं प्रेम की आरती।

मैं वह सत्य,
जो अनंतकाल से बचा है।
मैं वह खेल,
जो नियति ने रचा है।

मैं ध्यान की शांति,
धर्म की क्रांति।
मैं सुदामा के चावल का मिठा स्वाद,
नंदबाबा की आँखों की भीगी याद।
मैं चमक हूँ स्वर्ण की,
उदारता हूँ कर्ण की।
प्रेममय मोतियों का हार हूँ,
सुदर्शन का प्रलय अपार हूँ।

मैं प्यासी की प्यास में,
मैं भूख में , श्वास में,
मैं मंदिर की मूरत हूँ,
मैं प्रकृति की सूरत हूँ,
मैं भीष्म की शैया भी,
मैं माँ के आँचल की छैय्या भी,
मैं युद्ध का घोर संकल्प हूँ,
प्रेम का कोमल विकल्प हूँ।

अयोध्या की घाटों में,
यमुना की रातों में,
मैं बहता हूँ भाव की धार में,
मैं सजता हूँ हर अवतार में।

मैं सुर हूँ, जो मौन में बजता है,
मैं ध्वज हूँ, जो रथ पर सजता है,
मैं दीप हूँ, जो तूफ़ानों में भी जलता है,
मैं अर्जुन का विश्वास हूँ, जो मन में पलता है।
मैं वही नाम हूँ,
जो हर साँस में चलता है।

जब अन्याय ने सिर उठाया,
मैं रण में गर्जन बन आया।
गीता का वह ज्ञान मैं हूँ,
जिसने मोह से मन को छुड़ाया।

अद्भुत मेरा महा-रास है,
मेरा कण-कण में निवास है।

हाँ, मैं कृष्ण हूँ।
मैं ही बलराम हूँ,
मैं ही अयोध्या का राम हूँ।
मैं ही मीरा का घनश्याम हूँ,
मैं ही सुबह-शाम हूँ।
मैं अधूरे प्रेम का पूर्ण नाम हूँ —
हाँ, मैं कृष्ण हूँ।


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