By Anuragi (Mahaveer Singh Tanwar)
गीतों में अपना गाँव लिखूँ, सुबह से लेकर शाम लिखूँ।
जहाँ की मिट्टी महक रही, खेतों में हरियाली धाम लिखूँ,
फूलों से सजी वो राह लिखूँ, गीतों में अपना गाँव लिखूँ।
ओस कणों में झिलमिल धूप, वसुधा का प्यारा अनुपम रूप।
बारिश की बूँदों से बनता, शस्य श्यामला पूर्ण स्वरूप।
मातृभूमि को मैं प्रणाम लिखूँ, गीतों में अपना गाँव लिखूँ।
सर्दी में ठिठुरन का एहसास, कोहरे में आती जाती श्वास।
बनते जीवन का यह आधार, सूरज की किरणों का विश्वास।
सुरक्षा चक्र अलाव लिखूँ, गीतों में अपना गाँव लिखूँ।
नदिया की जहाँ धारा बहती, प्यास बुझाती खेतों की,
अंबर को चूमते पीपल ऊँचे, धुन मीठी गुंजित पत्तों की।
पंछी का मधुरिम गान लिखूँ, गीतों में अपना गाँव लिखूँ।
कच्चे घरों की वो चौपालें, जहाँ शामें गीत सुनाती हैं,
बूढ़े बरगद की छाया में, कहानियाँ रंग जमाती हैं।
दत्तचित्त वो श्रोता भाव लिखूँ, गीतों में अपना गाँव लिखूँ।
जहाँ गोधूलि की छवि लुभाती, गायें आतीं घर को रम्भाती,
चूल्हे से उठती वो महक, रोटियों की खुशबू फैलाती।
अद्भुत सा मैं वो स्वाद लिखूँ, गीतों में अपना गाँव लिखूँ।
मिट्टी की खुशबू से बहती, हर दिल में प्रेम की धारा,
सादगी में छिपी वो रौनक, और रिश्तों पर दिल वारा।
चरित्र में वो संस्कार लिखूँ, गीतों में अपना गाँव लिखूँ।
जहाँ बचपन ने खेल रचाए, सुख-दुख के साथी सब अपने,
और हँसी के पल सजाए, छोटे-बड़े देखें सब सपने।
अकुलाता ऐसा चाव लिखूँ, गीतों में अपना गाँव लिखूँ।
जहाँ पवन प्रभाती की खुशबू, हर गली में बजते गीत जहाँ,
जहाँ बसा है बचपन का जादू, मन के मिलते हैं मीत जहाँ।
सुंदर सा आविर्भाव लिखूँ, गीतों में अपना गाँव लिखूँ।
खेतों में चादर मखमल सी, सरसों की अपनी कहानी है।
चमके धूप खनक सोने की, जिसमें ममता की निशानी है।
गोदी में अनूठी छाँव लिखूँ, गीतों में अपना गाँव लिखूँ।
बागों में मीठे महकें आम, बारिश की बूँदें खेतों में।
हल से लकीरें मेहनत की, विश्वास बसा मनचेतों में।
अब तो मैं वही लगाव लिखूँ, गीतों में अपना गाँव लिखूँ।
होली पर देवस्थानों पर जाना, घर-घर दीप धर दीवाली मनाना।
बहन-बेटियों को चाहकर बुलाना, रक्षाबंधन पर खुशियाँ छा जाना।
त्योहारों का अद्भुत भाव लिखूँ, गीतों में अपना गाँव लिखूँ।
पंचायत में वो मेल-मिलाप, चौपालें कहती हैं कहानियाँ।
सरलता में है जीवन का स्वाद, चेहरों पे सच्चाई की रवानियाँ।
सादगी, सौहार्द, समभाव लिखूँ, गीतों में अपना गाँव लिखूँ।
आधुनिकता का भी जादू है, स्कूलों की घंटी बजती,
सड़कों पर सपनों की गाड़ी, हर युवा उम्मीद में मस्ती।
हर दिन होता बदलाव लिखूँ, गीतों में अपना गाँव लिखूँ।
आधुनिक बदला रूप-रंग, पर यादों में रहेगा सदा संग।
सब सुनते धड़कन की आवाज, नये सपने, नये जीवन का आगाज़।
दीपों का वो छटपटाव लिखूँ, गीतों में अपना गाँव लिखूँ।
जहाँ मिट्टी का हर कण अनमोल, जहाँ जीवन का है सार सरल।
हर दिल को खुशियाँ दे जाएँ, जहाँ जीवन के हर रंग तरल।
अपनेपन का मैं बर्ताव लिखूँ, गीतों में अपना गाँव लिखूँ।