उदास गुड़िया – Delhi Poetry Slam

उदास गुड़िया

By Anuradha Ketu

ना गुड़िया पहले सी हँसती है,
ना गुड़िया पहले सी रोती है,
बस खामोश रहती है,
और खूब चैन से सोती है।

अब चिंता किस बात की है,
उसका सब कुछ तो खो चुका है,
अब कुछ बचा नहीं है खोने को,
अब कोई वजह नहीं है रोने को।

खूब रोई थी वो,
जिस दिन सब कुछ बिखर गया था,
कहने की और सुनने की
सब वजह खत्म होती चली गई।

पर अब गुड़िया खामोश रहती है,
और खूब चैन से सोती है।


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