प्यारी दुलारी – Delhi Poetry Slam

प्यारी दुलारी

By Anuradha Govil Kulkarni

हरी भरी छरहरी
सरसरी सनसनी सुनहरी 
जो मुसमूसी रुई सी
कमरे में धूप सी
घुसी फिर निकल गई

इक पकड़ 
जो छूट गई 
फूट फूट झरने सी जो लोटती थी 
अब लुट गई 
सुप्त गुप्त लुप्त हुई 
मिट गई

सूँई की आँख में
रेशम के तार सी 
वो पिर गई
वो मेरी तेरी 
प्यारी सी
दुलारी सी
भर्राई सी वो भर गई

झुक गई 
वो डाल सी 
फूल की फुहार सी 
पंखुड़ी वो
खिल के फिर बिखर गई

धूल सी उड़ गई 
वो धुंधली एक याद सी 
गीली नमी वो बूँद सी 
टपक गई 
वो मिल गई 
वो घुल गई 
चाकू की धार थी
वो सब्ज़ियों सी 
कट गई

बूढ़ी आँख की वह रोशनी
ज़र्रा ज़र्रा
बिखर गई
यही कही 
भिंची भिंची
वो पिस गई 
धान के निधान सी 
वो खप गई

बरस गई 
धीमी धीमी 
धार सी 
रिस गई 
वो घिस गई
रस्सी या 
तार सी 
वो खिच गई

मेरी तेरी 
प्यारी सी
दुलारी सी
मलाई सी फिसल गई 
दूध सी सफ़ेद थी 
वो खोट से यूँ भर गई 
बह गई 
डूबने से मगर 
वो बच गई

अब फैल के वह सो रही 
छरहरी भरभरी 
भर्राई सी 
तर्जनी सी हाथ की 
वो कील सी गड़ गई

अब उसे इधर उधर की फ़िक्र नहीं 
सुधर गई 
बिगड़ गई
वो ज़िक्र से
मलाल से
गुलाल सी 
वो लाल सी
अब रच गई

मख़मली रूमाल सी 
वो हर जगह जो बिछ गई 
फूल से अस्तित्व की 
ख़ुशबू वह बहार की 
अब हर जगह 
फैलती

वो इश्क़ की शर्म सी
लालिमा वो गाल पे 
कभी जो दिख गई 
या छुप गई
तेरी 
मेरी 
प्यारी सी
दुलारी सी
वो घूमती 
घुमक्कड़ धरा सी 

सिंची-सिंची ज़मीन सी 
यूँ अब उपज गई 
गुलाब के वो
फूल सी
वो फूलों सी थी
जो फूल सी ही चढ़ गई ।।


2 comments

  • Lytfzifzofcpuiv

    Gayatri
  • One of the most beautiful pieces!!

    Girish Kulkarni

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