मैं खुद से मिलना चाहती हूँ – Delhi Poetry Slam

मैं खुद से मिलना चाहती हूँ

By Anoyuksha Singh

मैं खुद से मिलना चाहती हूँ।

बड़ी देर कर दी आने में
सफ़र शुरू भी देर से ही किया।
बीच में भटके भी कितनी बार
और कितनी बार चलना ही छोड़ दिया।

कभी कुछ यूं डरे
की एक और कदम आगे ना बढ़ा
कभी इस हद तक गिरे
की उठने का होश ही ना रहा।

कभी भूल गए कि निकले ही क्यूं।
किसने बोला ये सफ़र तय करो?
कभी ऐसे जालों में फस पड़े,
की बस तोड़ने ही वाले थे इस दम को।

कुछ चोटें हैं बाहर से लगीं
कुछ घाव तो काढ़े हैं खुद हमने।
ना जाने किसको ढूंढ रहे दर बदर
जब अनगिनत मुखौटे पहने खुद हमने।

बड़े चालक से मुखौटे रहे हैं ये भी
जैसे ये मेरे नहीं, मैं इनकी कठपुतली हूं।
जहां जैसा मन आया, बांध दिया
न जाने कितने हिस्सों में मुझको बांट दिया।

इस वास्ते की तुम ऐसे सुरक्षित रहोगी
ये कर लो तो बस कोई दुख ना सहोगी।
और ये काम न करे, तो ये वाला मुखौटा पहन के देखो
और अपने बाकी, गंदे, तुच्छ से हिस्सों को, खुद से दूर काट के फेंको।

अच्छा… काट नहीं सकती तो बदल डालो,
किसी अच्छी, सुडौल, खूबसूरत छवि में ढालो।
क्या मतलब है… क्यूं रखना है सारे हिस्सों को?
यूं ही नहीं मिलता है प्यार किसी को।

अब सब कह रहे हैं तो ठीक ही होगा,
ये मान के करते चले गए सब कुछ।
इतना पुराना समाज, इतने अनुभवी लोग।
तो कमियां तो मुझमें ही होंगी कुछ ना कुछ।

और कमियां होना एक तरफ़,
पर उनको रहने देना तो पाप है।
तुम देख कैसे सकती हो खुद को आईने में?
तुम्हारा यूं होना ही अपराध है!

अपराधबोध के इस घने जंगल में
बहुत समय गंवाया है अब तक
जैसे तैसे चुन चुन कर
बिखरे हिस्सों का एक चित्र बनाया है अब तक।

मैं इस जंगल से
अब बाहर निकलना चाहती हूँ।
अपने सारे मुखौटे, बेड़ियों, जंजालों को,
मैं यही छोड़ना चाहती हूँ।
कई वर्षों की मैली परतों को,
अपनी आत्मा से धो देना चाहती हूँ।
अब बस मैं, बेसब्री से…सिर्फ़ खुद से मिलना चाहती हूँ।
मैं खुद से मिलना चाहती हूँ।।


4 comments

  • Very profound and achingly true.
    In trying to discover ourselves, we became puppets, forgetting who we were before the strings got attached.

    Shell
  • Very profound and achingly true.
    In trying to discover ourselves, we became puppets, forgetting who we were before the strings got attached.

    Shell
  • Bahut sunder abhivyakti

    Beena Singh
  • Jeevan ok dhyan se dekhna jeene ka arambh hai…bahut achhha

    Soopti khare

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