आखिर उसे हुआ क्या बेपरवाह थी वो कभी – Delhi Poetry Slam

आखिर उसे हुआ क्या बेपरवाह थी वो कभी

Annu Kaliraman

आखिर उसे हुआ क्या है,
 जो अक्सर सहम जाती है वो।
 गली में निकलने से पहले,
 दुपट्टे से खुद को ढंके जाती है वो।
 हल्की सी आहट हो या अंधेरा,
 अक्सर घबरा जाती है वो।
 खुली हवाओं में भी दम घुटने लगा है उसका,
 अब इंसानों में छूपे दरिंदों को देख पाती है वो।
 बेपरवाह सी रहती थी कभी जो,
 चहचहाती थी चिड़ियों से भी ज्यादा।
 आवाज़ दब सी गई है,
 ढूंढने पर भी बस चुप्पी मिली है।
 सवाल बार बार एक ही दोहराती है वो,
 उसकी गलती क्या है।
 क्यूं उसे ये दर्द मिला है,
 आखिर उसे हुआ क्या है...
 मुस्कुराहट मिलती थी हर वक्त जिस चेहरे पर,
 खिलखिलाती गुनगुनाती थी जो सदा।
 वो कहीं गुम हो सी गई है,
 लाल आंखें दबी सिसकियां अंदर ही अंदर रो रही है।
 ज़ख्म भर गए है ऊपर से,
 रुह अब भी चिल्लाती है।
 खुद को समेटे कोने में,
 वो दर्द भरी आह से कहराती है।
 आखिर उसे हुआ क्या है...
 दौड़ती थी लहरों सी जो,
 उठती जैसे छू लेगी आसमां।
 बेफिक्र मग्न मस्त जज़्बाती सी वो,
 लिए लाखों चाहतों का सिलसिला।
 अब थम सी गई है,
 सवाल वही उसकी क्या ग़लती है।
 सांसें चल रही हैं,
 पर वो खुद में नही है।
 हर पल आंखों में उसके डर भरा है,
 ठीक से अब वो सोती नही है।
 रातें कटती हैं उसकी कांपते हुए,
 बंद आंखों में दर्दनाक मंजर वही है।
 लड़ी थी वो, चिखी थी, चिल्लाई थी,
 कोशिश कितनी की उसने,

कितनी बार कहा "छोड़ दो जाने दो मुझे"
 पर किसी ने नहीं सुना।
 नोंच डाला पुरा उसे,
 शरीर पर ना जाने कितने घाव थे।
 थक गई वो हार गई थी वो,
 डगमगा रहे जमीन पर उसके पांव थे।
 हर चेहरे से अब वो डरने लगी है,
 कोने में यूं सिमटने लगी है।
 जो बेपरवाह थी कभी,
 कितनी निडर थी वो।
 डर उसे सताने लगा है,
 मन उसका घबराने लगा है।
 पर कहानी अभी खत्म नही हुई है,
 चिंगारी बाकी है उसमें दहकेगी जो।
 चमक अब भी बची है आंखों में,
 फिर से उठकर चमकेगी वो।
 टूटी नही है बाकी है हौसला,
 बस थोड़ी देर थमी है वो,
 थी कभी बेपरवाह सी जो।


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