भग्न स्वपन – Delhi Poetry Slam

भग्न स्वपन

By Ankita Mishra

फिर एक बार सब कुछ टूट गया
मन जो था जरा सा खड़ा, फिर रूठ गया।
हिम्मत को फिर से हारते देखा,
स्वप्नों को फिर खुद से दूर जाते देखा।
जो आवाज गूंज के खुशियां मनाना चाहती थी,
उसे चीख बन के भी चुप्पी साधते देखा।
जाने क्या क्या टूट रहा,
जाने क्या क्या छूट रहा।
बस खामोश मन को यूंही हारते देखा।
कोई कहता है ,"क्यों इतने में ही हार गए?"
"फिर उठो कल के लिए प्रयास करो।"
पर बार बार गिरना और खुद को संभालना,
कोई क्या जाने ,क्या-क्या ले जाता है।
हिम्मत को हराता,खुद को चूर -चूर कर जाता है,
तुम क्या जानो ये हार हमारा,
क्या क्या ले जाता है,जो कभी भर न पाए,
ऐसे कितने घाव दे जाता है।
हिम्मत, ताकत, विश्वास लेकर हमारी,
कर जाता हमें कितना खोखला,
और तुम कहते हो,"क्यों हो रहे इतने उदास भला?"


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