By Anjali Gandhi

जब कहने को और कुछ भी ना रहा
फिर भी राह देखे दिल है खड़ा
शायद कहीं एक छोटी आस हो बची
कहीं बूंद-सी याद हो छुपी
मेरी नाराज़गी के पार तो तू देख लेता
नज़रें जो बात कह रही थीं, सुन लेता
शायद कुछ ही पल का साथ था हमारा
अब वो वक़्त चाहकर भी ना आए दोबारा
दिल और दिमाग ने छोड़ दिया एक-दूजे का साथ
कौन गलत? कौन सही? खोजते हुए निकल गई रात
पता नहीं हम बीच कब बढ़ गई इतनी दूर
अब लगता है कि बस रहने दो ये ख़ामोशी