By Manas Saxena

काश कुछ पन्ने अपनी किताब में फिर से जोड़ पाता,
काश इस समय को मैं उल्टा मोड़ पाता।
काश हाथों की किस्मत की रेखा इतनी बेनाम न होती,
काश खुशी से मेरी ज़िंदगी इतनी अनजान न होती।
छोटी-छोटी बातों पर अब तो ख़ून खौल उठता है,
सही-गलत का फ़र्क भी अब समझ नहीं आता है।
काश मेरी रूह इतनी परेशान न होती,
काश खुशी से मेरी ज़िंदगी इतनी अनजान न होती।
करवटें बदलता हूँ इस उम्मीद में कि शायद किस्मत बदल जाएगी,
जागता रहता हूँ रात भर कि शायद कुछ पल की नींद आ जाएगी।
लोगों से भरे इस शहर में मेरी राहें यूँ वीरान न होतीं,
काश खुशी से मेरी ज़िंदगी इतनी अनजान न होती।
अब तो हर रोज़ आगे बढ़ने से डरता हूँ,
जीता हूँ बस कुछ पल, बाकी वक़्त मरता हूँ।
दर्द से तंग आ चुका हूँ, दुआ करता हूँ कि बस इस शरीर में जान न होती,
काश खुशी से मेरी ज़िंदगी इतनी अनजान न होती।