Anjaan – Delhi Poetry Slam

Anjaan

By Manas Saxena

काश कुछ पन्ने अपनी किताब में फिर से जोड़ पाता,
काश इस समय को मैं उल्टा मोड़ पाता।
काश हाथों की किस्मत की रेखा इतनी बेनाम न होती,
काश खुशी से मेरी ज़िंदगी इतनी अनजान न होती।

छोटी-छोटी बातों पर अब तो ख़ून खौल उठता है,
सही-गलत का फ़र्क भी अब समझ नहीं आता है।
काश मेरी रूह इतनी परेशान न होती,
काश खुशी से मेरी ज़िंदगी इतनी अनजान न होती।

करवटें बदलता हूँ इस उम्मीद में कि शायद किस्मत बदल जाएगी,
जागता रहता हूँ रात भर कि शायद कुछ पल की नींद आ जाएगी।
लोगों से भरे इस शहर में मेरी राहें यूँ वीरान न होतीं,
काश खुशी से मेरी ज़िंदगी इतनी अनजान न होती।

अब तो हर रोज़ आगे बढ़ने से डरता हूँ,
जीता हूँ बस कुछ पल, बाकी वक़्त मरता हूँ।
दर्द से तंग आ चुका हूँ, दुआ करता हूँ कि बस इस शरीर में जान न होती,
काश खुशी से मेरी ज़िंदगी इतनी अनजान न होती।


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