By Anchal Chand
कही सुना था;
सबसे कठिन है सरल होना!
आसान है क्या, पानी में तरल होना?
न घुल सकते हो,
न छट सकते हो,
न बिखर सकते हो,
न दृढ़ता के कारण हट सकते हो।
चांद की रोशनी भी
सूरज की किरणों से आती है।
पर्वतों से बर्फ पिघलकर
नदी का स्तर बढ़ती है।
अपने स्रोत का ज्ञान रखकर
नदी थोड़ा तो इतराती है।
मैदानों को उपजाऊ कर
अंततः सागर में मिल जाती है।
सूरज भी तो तपता है,
अपने ही तेज से।
रेगिस्तान कब दुखी हुआ
अपने ही बिखरी रेत से?
कब पेड़ों को अपने ही
सूखे पत्ते भार लगे?
चिड़ियाओं को कब खुला आसमान
भय का आधार लगे?
प्रश्न यह है,
कि क्या सरलता है दुखों का आधार?
और तर्क यह है,
कि जैसा नजरिया, वैसा संसार।।