By Anand Shrivastava
जाने छेड़ा कैसी तान ।
ओ पथिक प्रेम नगर का सुन ले,
तू देकर अपना ध्यान ।
यहां फूलों की है झांकी केवल,
पथ सब कांटों का ही पाता है ।
है रेत का महल ये प्रेम नगर,
क्षण भर में ढह जाता है ।
तन-मन-धन सब छीन जाते हैं,
छिन जाता चैन सुकून यहां ।
है अरमान जो दिल के सारे,
आंसू बन बह जाता है ।
बड़ा कठिन है राह ये रही,
तू पग-पग रखना ध्यान ।
ओ पथिक प्रेम नगर का सुन ले,
तू देकर अपना ध्यान ।
रूप मोह की है ये अनोखी नगरी,
बड़ी अद्भुत है इसकी माया ।
जेठ की तपती दोपहरी में,
लगे जैसे बटवृक्ष की छाया ।
चंद लोग हुए हैं सफल यहां,
बाकी सब छले गए ।
छल-छद्म की ये ऐसी नगरी,
भेद न कोई जान पाए ।
छले जाते हैं यहां सभी,
भले नरश्रेष्ठ हो या विद्वान ।
ओ पथिक प्रेम नगर का सुन ले,
तू देकर अपना ध्यान ।
है आग का दरिया ये प्रेम नगर,
जल मर जाना है मंज़िल ।
जग बच के चला है कांटों से,
यहां हर फूल-फूल है कातिल ।
हुस्न-ओ-शबाब की ये ऐसी मंडी,
अनमोल नग़ीने खा जाती है ।
डूबती कश्ती मझधार यहां,
पाता न कोई साहिल ।
है मीठा ज़हर ये प्रेम नगर,
रोज़ हरेंगे तेरे प्राण ।
ओ पथिक प्रेम नगर का सुन ले,
तू देकर अपना ध्यान ।
माना प्रेम बिना जग सूना है,
लेकिन व्यर्थ होंगी तेरी कामनाएं ।
वासना की इस नगरी में,
प्रतिफल मिलेंगी नित यातनाएं ।
प्रेम के संग राग होगी,
प्रतिशोध, प्रतिकार या कुछ और भी ।
न जाने होंगी कितनी,
सत्य या मिथ्या तुम्हारी याचनाएं ।
इसी कामना और याचना के
मध्य बसा है वंचना का उद्यान ।
ओ पथिक प्रेम नगर का सुन ले,
तू देखकर अपना ध्यान ।
प्रेम अगम है, प्रेम निगम है,
प्रेम ही जग सृजन हार ।
पर वंचित है उस प्रेम से,
प्रेम नगर के कुछ किरदार ।
मुस्काती अधरों पर मीठी वाणी,
लेकर दो नैन शैतानी ।
सजाते ये बाज़ार यौवन का,
करते प्रेम का व्यापार ।
मत फंस जाना उस जाल में राही,
कर लेना पथ की पहचान ।
ओ पथिक प्रेम नगर का सुन ले,
तू देकर अपना ध्यान ।
प्रेम नगर का एक परिंदा,
जाने छेड़ा कैसी तान ।
ओ पथिक प्रेम नगर का सुन ले,
तू देकर अपना ध्यान ।