Amit Kumar Gupta – Delhi Poetry Slam

Boonde

By Amit Kumar Gupta

बूंदों को टपकते देख कर 
कुछ और बूंदे चल पड़ी। 
रोकने की चाह थी, 
पर और भी वह बह चली। 

न रोक सका, न रुक ही सकी,
बहती ही गयी, कहती ये गयी —
मत रोको मुझे तुम आज,
आज बह जाने दो, 
इस दुःख के काले से, 
थोड़े दुःख को तो उड़ जाने दो।

ये बदल वर्षा करके नम कर देंगे बंजर धरती को,
न सही हजारों, एक सही भीगेगा तो भीगेगा।
उन हजारों की गिनती न कल ही हुई थी,
न आज ही होगी।
बस भीगने वाला ही उनके स्पर्श सुख को जानेगा।

एक दो अश्रु बूंदें आ जाएँगी कपोलों पर उसके भी,
एक महात्मा की याद में वो भी रोएगा,
एक महात्मा की याद में वो भी रो लेगा।


2 comments

  • Nice🙂

    Anuradha
  • Thought provoking

    Dr J.K. Verma

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