By Amit Sharma
आज बाजार की दशा और दिशा को दर्शाती एक कविता
बाजार में आऐ हो गर खरीदार बनके,
अपने जेबों से रहना जरा जरदार बनके ।
हर चीज की कीमत तय हो लेकिन,
बिकती हैं ज़रुरतें यहां तलबगार बनके ।
घर से निकल कर देखो कीमत तुम्हारी , दुनियां के बाजार में,
शय कि हो बात क्या, बिकते हैं नाम यहां दर-ओ-दिवार में ।
जरुरतै बदलती रही, मुकाम आते रहे,
गुलाम बिकते थे पेहले, आज हुक्मरान बिकते हैं सरकार में । २ ।
कहीं इंसा कहीं ईमां बिका ज़िन्दगी कि रफ़्तार में,
इक लाश सा जिन्दा बिका दरबारे - बाजार में ।
हर इक चिज़ तेरे अंदर कि जाती रही,
अब रहा क्या तेरे नाम का, तेरे हद-ऐ-ईकखतीयार में । ३ ।
बाजारों में क्या नहीं बिकता १०० टका बोलकर,
अक्सर लोग ईमां भी बेचते हैं , सामानो को तौल कर ।
दौरे - मिलावट कि रंगीनियां हैं आखौ पे इस क़दर ,
धुंध बिक जाते हैं यहां आसमानों के मोल पर । ४ ।
बाजार किसी बंदिशों पे नहीं लोगौ कि बयार पे चलती है,
जरुरत किसकी है कितनी , ये तलबगार पे चलती है ।
तलब इतनी लगा दे की कोई शय जीने की वजह बन जाए ,
जो शौक बन जाए तो सांसों की कगार पर चलती है । ५ ।
जरूरतो पर रंग भी बदलती है बाजार ,
कभी मुकम्मल तो कभी होती है लाचार ।
जरूरतै पूरी हो या हो अधूरी जिंदगी की ,
बाजार जीत़ता है हमेशा, इंसा की होती है हार । ६ ।
बाजार की गहराईयां तेरे जज्बात ना देखेगी ,
बस मुनाफे की बात है तेरी औकात ना देखेगी ।
तेरा अक्स बिक जाए, बीके चाहे अश्कों के मोती ,
कीमतों पर चलती है ये तेरे दिल के हालात ना देखेगी । ७ ।
तेरे सिक्के उछल ना जाएं बाजार में अपनी जेबों में गहराई रखना ,
सौदे की भीड़ है ये , छठ जाएगी, बचा के जज्बों की परछाई रखना ।
यह मौसमै - बाजार है आदतन बदल जाएगी ,
हर शय कि किमत गिरने देना पर अपने ईमां की ऊंचाई रखना । ८ ।
जिशम बिका , हर पुर्जे बीके, पर आंखों के इक ख्वाब खरीद ना पाया ,
जिंदगी के १०० सवाल बिके , पर मौत का एक जवाब खरीद ना पाया ।
बाजार बिक गया अपने आलम में दुनिया खरीदते , बेचते ,
जिंदगी बिकी बदहाल में, पर इक जज्बात खरीद ना पाया । ९ ।
जितनी जरूरत है तुम्हारी वह बाजार तुमको बेचेगी अपने दामों पर ,
जितनी जरूरत है बाजार की वो तुमसे लेगी अपने दामों पर ।
हालात बिकते हैं यहां जरा संभल कर मोल करना ,
तेरी मजबूरियां खरीद लेगी ये सस्ते दामों पर । १० ।
दर्द ना बिक सका , हकीमों ने दवाएं बेच दीं ,
घुटन सांसों में करके लोगों ने हवाएं बेच दीं ।
रात अंधेरी थी और लोग गुमराह,
किसी ने चांद को छुपा के कुछ समांऐं बेच दीं । ११ ।
कितने बने और कितने डुबे इसकी गहरी चाल पर,
कितनों को छोडा बेबस इसने अपने हाल पर ।
मंजिलें राह तकती रहीं उन कदमों की आमद को ,
और यहां राहें बेच दी गई पैरों में बेड़ियां डालकर । १२ ।
बंद बोतल का पानी और बंद बोतल की हवा ,
इक जिंदगी की कीमत और इक प्यास की दवा ।
बाजार ही तेरी रुखसत को जनाजा भी देगी ,
यह और बात है के चाहे तू हो बेनवा । १३ ।
जब भी कोई बात हो तो सौदे की बात हो ,
गर इबादत भी हो तो मुनाफे की बात हो ।
नेकी कर और जा, रब से मांग ले कीमत ,
रब को बेच दे बाजार न फलसफे की बात हो । १४ ।
वह चलती राहों पे गर्द बेचने की हुनर रखते हैं ,
वह बाजार के हैं मानिंद, बाजार की कद्र करते हैं ।
जिनके मंसूब में हो चांद तारों का जहां ,
वो जमीं की गहराइयों पे कहां नजर रखते हैं । १५ ।
मौका परस्त हो अगर तो बाजार आपके नाम की ,
शानौ - शौकत हो अगर तो बाजार आपके नाम की ।
ना काबलियत की कलम और ना हुनर का दम,
हो टुकड़ों पे गस्त तो बाजार आपके नाम की । १६ ।
चंद जरूरतै है जिंदगी की उसे पुरी की जाए ,
ना की चंद चीजों की खातिर पुरी जिंदगी बिक जाए ।
शय के सौदे से कहीं आगे निकल चुका बाजार है ,
के दुनिया (में) बाजार नहीं है आज, यह दुनिया (ही) बाजार है । १७ ।
आज फिर गया था बाजार अपनी जरूरतों को साथ लेकर ,
आज फिर कुछ जिंदगी बेच दी और कुछ सांसें खरीद लाया । १८ ।