आजाद हो तुम – Delhi Poetry Slam

आजाद हो तुम

By Amit Goyal

वो जो कहते हैं उन्हें कहने दो 
जैसे हो तुम खुद को वैसे ही रहने दो 
औरों से पहले तुम्हारा नाता खुद से है 
रिश्तों की कसौटी पर उसे मत ढहने दो

खुद से जितना करीब हो तुम खुद के 
उतने नज़दीक से तुम्हें कभी ना कोई जान पाएगा 
खुद से फासलों का दौर जो बढ़ने लगा एक दफा
ढूंढ पाना खुद को फिर नामुमकिन सा हो जाएगा

सबकी अपनी-अपनी राय है यहां पर 
हर दिन हर कोई जाने कितने ही रास्ते तुम्हें सुझाएगा 
पर आख़िर रखना है तो ख्याल बस तुम्हें ही तुम्हारा 
कोई और तुम्हारे ज़ख्मों पर क्यूं और कब तक मरहम लगाएगा

कुछ साबित नहीं करना है तुम्हें यहां इस जहां को 
हक नहीं किसी को जो तुम्हें तुम्हारी ज़िंदगी का मकसद समझाएगा
भरकर तो देखो उड़ान बस एक बार आज़ाद पंछी की तरह 
क्या पता मंज़िल से कहीं ज्यादा हसीन 
तब शायद तुम्हारा ये सफ़र ही बन जाएगा


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