आग – Delhi Poetry Slam

आग

By Amish Dave

कितनी बदकिस्मत है आग,
जो बेवजह बदनाम है...
कसूरवार तो हवा है,
जो अंगार को धधकती आग बनाती है...

अरे वो हवा ही तो है,
जो आग की तपिश हर जगह फैलाती है...
गर चाहे हवा तो,
जलती लौ भी बुझा सकती है...

तो,
कहाँ आग का खुद पे अख़्तियार है,
वो तो बस हवा का एक हथियार है...
फिर न जाने क्यों हवा नहीं,
ये मासूम आग बदनाम है...

ये मासूम आग बदनाम है...

बोध:
ज़रूरी नहीं है कि जिसने अपराध किया हो,
वही असली गुनहगार हो!


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