By Amberdeep Kaur

ज़ख़्म कितने लिए हैं उसके शरीर ने,
कितने सपने दबा दिए गए उन उम्मीद भरी आंखों के
क्यों जला दिया गया उसे रिवाज़ के नाम पर,
क्यों मिटा दिया गया असितत्त्व उसकी पहचान का
पहनाकर इज्ज़त का ताज,
क्यों तोला जाता है सरेआम उसके इमान को
क्यों रोंदा जाता है, उसकी ही उम्मीदौं को
क्यों बेड़ी मर्यादा की सिफृ उसके ही पैरों पर,
क्यों हशृ है ये उसका हज़ारों सालों से
हक ना मिला तो कई छीन ले गई,
बदनाम भी हुई, पर कामयाबी सर ले गई
इतिहास पढ़ने का जज़्बा नहीं किसी में,
चार दिवारी है उसका घर, यही बोलते है उसके नसीब में
घर छोड़ आईं कई, किसी ने लोग बदल दिए,
जंजीर तोड़ निकल आईं,
किसी ने पंख फैला लिए।