Akshita Goyal – Delhi Poetry Slam

Meera Bhojh

By Akshita Goyal

 

आटा गुंथा प्रीत का

बेली रोटी प्रीत की

और फिर तवे पर

सेकी रोटी प्रीत की

खिलाने की बारी आयी

दो वाले को दी ढाई

पर गणित है हैरान खड़ी

ना प्रीत घटीं

ना प्रीत बढ़ी

ना प्रीत बिकी

ना प्रीत कमाई

दो खाने वाले ने क्यूंकि

अब भी रोटी दो ही खाई

प्रीत मिली है काटे से कब

की जितनी दी, उतनी पायी

प्रीत बटी है बेजा सब में

सब से ज्यादा बे-अदब में

सबने परोस दी दो की ढाई

सबने आधी आधी गंवाई

ये कहानी है प्रीत की,

जिसे हिंदी में स्नेह या प्रेम कहते हैं

उर्दू में इश्क मोहब्बत कहते हैं

और राजस्थानी में मीरा कहते हैं

तो सुनिए कहानी प्रीत की,

मना है, मना है

उसे इतना चाहना मना है

पर मेरे मन के आंगन में

वही मटमैला सना है

छोटा सा जीवन

उसे निहारते जीना है

देह जितनी झीनी

प्रेम उतना घना है

वो है मेरे साथ

मैं हूँ उनके साथ,

पर ये बात है पहेली

माने ना सखा सहेली

मैं कहूँ, देखो वहां

है खड़े मेरे कान्हा

पर उन्हें मैं तो

बस दिखूँ खड़ी अकेली

मूरत, अमूरत, उनकी सूरत

कहे सब मेरी कल्पना है

तू मनुष्य है मीरा

तू कलयुग में है मीरा

और यहां रहते सदा

अदृश्य कान्हा है

हो त्रेता

हो द्वापर

दम तोड़ा है हर युग ने

इस युग में आकर

नारी या नर, के बुलाने पर

नहीं चले आते धरा पर अब ईश्वर

तू जल्दी चल देखने,

हठ अपनी छोड़ कर

कि तेरे राणा की बारात आ गई है

ब्यावर के मोड़ पर

ये सुन मीरा कुछ झुंझलाई

उसे आज हो रहे,

अपने विवाह की बात याद आयी

उसने अपने कान्हा की मूर्ति को संवारा

उन्हें उठाकर दोबारा

वो मंडप में जा बैठी

उसे मूर्ति के साथ देख बैठा

उसकी ननदें भाभियाँ खूब ऐंठी

एक बुत से ऐसा अद्भुत प्रेम

कहा समाएगा संसार की सोच में

पर ऐसे में मीरा को मिले

उसे समझने वाले सखा, राजा भोज में

उन्होंने मीरा को पूरी तरह अपनाया

महल में मीरा के कान्हा का मंदिर बनवाया

यूँ तो उन्हें भी होती थी ईर्ष्या

कि मीरा, तुम हर सवेरे संध्या

बस कान्हा के लिए ही हो सजती संवरती

दिनभर बस तुम कान्हा कान्हा ही करती

मीरा कहती कि मैं आप से हूँ ब्याही

आपका साथ मैं दूंगी सदा ही

सदा आपकी सेवा को मीरा खड़ी यहां है

पर मेरे जीवन चक्र का बिंदु ही कान्हा है

ये सुन भोज कुछ उदास हुए

उन्हें कुछ कठोर सत्य आज आभास हुए

वो बोले कि मीरा,

जब तक मेरा तुम्हारा साथ रहेगा

जीवन हम दोनों की बराबर परीक्षा लेगा

शायद मुझे, तुम्हारे जीवन में,

कभी कान्हा का स्थान ना मिले

और तुम्हें तुम्हारी भक्ति के कारण ढेरों ताने अपमान मिले

पर हम विषाक्त अपना बंधन नहीं करेंगे

जिसका उत्तर हम जानते हैं

तुमसे वो प्रश्न नहीं करेंगे

प्रेम में तर्क-वितर्क की जगह नहीं

तो मैं तुम्हारा सखा सही, यदि कान्हा नहीं

इनकी बातें सुन आप चौंकिए मत

पर सोचिए, ये संवाद है या सबक

सोचिए,

कि महलों में रहकर भी मीरा

कैसे इतनी निर्मोही थी

किसने उस राजकुमारी को

प्रेम सुई चुभोई थी

गलत हुआ, कि ठीक हुआ

पर प्रेम उसे अलौकिक हुआ

माता-पिता, या सहेली सखा

सबने, अध्यात्म छोड़ने को कहा

जिस आत्मिकता के कारण इतने अहित हुए

उसी पर क्यों राजा भोज मोहित हुए

खोजिए, तो

पाइएगा, कुछ चिंतन पर

कि उनके जीवन के हर चरण पर

हर दुख, सुख, वरण, कथन पर

मीरा का कान्हा को चुनना

भोज द्वारा मीरा के चयन पर

कितना विवाद हो सकता है

कोई उन पर हँस सकता है

कोई उनके लिए रो सकता है

कोई ये पूछ सकता है

कि एक राजकुमारी कैसे जोगन हुई

और एक जोगन कैसे दुल्हन हुई

और एक जोगन को अपनाने

कैसे एक राजा माने

विधि ने ये अजीब किस्सा

क्या अकारण ही बुना था

या सच हुआ जो सदियों से हमने

कहावतों में सुना था

आप इसे साधारण या विशेष कह लें

ये किस्सा हुआ जो वर्षों पहले

पढ़ उसे, हो जाये भरोसा प्रेम पर

या फिर बस इतिहास का मन बहले

माना मानव की समझ में

सिर्फ तर्कों का अधिपत्य है

पर इस अर्धसत्य में भी

एक बात सत्य है

कि एक राजकुमारी जोगन बनी थी

एक जोगन दुल्हन बनी थी

एक जोगन को अपनाने

थे एक राजा माने

जैसा कहावतों में सुना

वैसा ही हुआ था

जैसा कि आपको भी पता है

कि ज़हर को केवल ज़हर काटता है

सांप का काटा, फिर उसी के ज़हर से बच पाता है

और प्रेम को केवल, प्रेम समझ पाता है।


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