By Ajay Singh Rao

दरिया को थामते,
नदियों को बाँधते,
टूटी-बिखरती कगारों
पर बने रहते हैं किनारे।
संबंध लहरों के सहारे,
अपनों को सदैव जोड़ते,
परंतु स्वयं को तोड़ते।
कटते, टूटते, झरते मोड़,
लहरों सी चीत्कारें —
पर बने रहते हैं किनारे।
एक-दूजे को तकते,
बुलबुले, बीच मौन फेन,
ज्वार-उफानों के मारे।
जीवित, दरिया के सहारे,
परंतु प्रतिबद्ध संबंधों से —
हमेशा बने रहते हैं किनारे।