बारिश की बूँदें – Delhi Poetry Slam

बारिश की बूँदें

Dr Ajay Janmejay

बारिश का ये ग़ज़ब नज़ारा,
कितना न्यारा, कितना प्यारा।

कुछ बूँदें मस्ती में आकर,
बैठ गईं तारों पर आकर 
जैसे चिड़ियाँ बैठ गई हों।

इन गिरती नन्हीं बूँदों का
इक छोटा सा तन होता है,
इस तन में इक मन होता है।

और इसी तन-मन की ख़ातिर
सोच रहीं हैं नन्ही बूँदें 
इतने ऊपर से अब आके,
मिलना नहीं धूल में जाके।

इसीलिए तो आपाधापी
मची हुई है सावन के
इस कैनवास पर।

इन बूँदों की
एक लड़ाई सजी हुई है।

बूँद जिसे मौक़ा मिलता है,
वो इतराती, ख़ुशी मनाती।
इक-इक करके
बैठ रही है इन तारों पर 
तार जो बिजली के फैले हैं।

लेकिन तारों की सीमा है,
जिस पर वो बिठला सकते हैं
कुछ बूँदों को।

बूँदों के इस घमासान से
अजब नज़ारा है तारों पर 
जैसे नन्ही रेल दौड़ती है बूँदों की।

धकियाती हैं इक दूजे को 
यूँ लगता है,
बूँदों के आगे हैं बूँदें,
बूँदों के पीछे है बूँदें।

कुछ बूँदें आपस में मिलकर
पल भर में ही
बूँद एक बड़ी बन जाती 
जो अपने ही बोझ के कारण
गोद में धरती की गिर जाती।

लेकिन बूँदों का तारों पर
आकर बैठते जाने का
अनवरत सिलसिला जारी है ये।

इसी नज़ारे की ख़ातिर
मैं जब-जब भी बारिश होती है 
खिड़की खोल खड़ा होता हूँ।

पकी उम्र में भी
इक बच्चा मुझमें
हुमक-हुमक पड़ता है।


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