By Aishvarya Verma
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दशकों तक समझ ना आया, ऐसा एक भेद था,
हिंदुस्तान में जन्म लिया पर हिंदी बोलने पर खेद था।
छल-कपट, और देशद्रोह की कहानियों का वर्ग विशेष था,
बस मेरे भारतवर्ष का स्वर्णिम इतिहास ही निषेध था।
पर गए दशक एक हिंदी-भाषी ने पराक्रम दिखला दिया,
विश्व के हर मंच पर भारत का परचम लहरा दिया।
आज हिंदी-भाषी होना सर्वोत्तम सौभाग्य है,
ज्ञात ना जिसको स्वरूप इसका, ये उसका दुर्भाग्य है।
स्वरों में मधुरता इसके, व्याकरण में गहराई है,
संस्कृत से उपजी ये वाणी, जिसमें संस्कृति समाई है।
कभी लेखकों की लेखनी में, कभी संतों की वाणी में,
गूँजती रही इस धारा पर, हर युग की कहानी में।
आज भी है लज्जित कोई, तो कल उस को भी गर्व होगा,
हर कविता एक उत्सव, और हर श्लोक एक पर्व होगा।
हिंदी जन-जन को जोड़े, ये साधना हमको लक्ष्य है,
क्योंकि अपनी ही जड़ों से कटकर, कहाँ बढ़ा कोई वृक्ष है?