ईश्वर का आविष्कार – Delhi Poetry Slam

ईश्वर का आविष्कार

By Aditya Shakalya

गर आदम बर्क से न घबराया होता
उसे अंधेरों ने न डराया होता
उसे भूख ने न सताया होता
उसे मौत ने न रुलाया होता
तो क्या उसने भगवान बनाया होता?

अगर न होती ख़ुदा की दख़ल ज़िंदगी में
न दोज़ख का डर, न जन्नत की चाहत सभी में
तो फ़िर इंसा ने  कहां ख़ुद को ख़ुद से छिपाया होता?
कभी तो अपना असली चहरा दिखाया होता।

गढ़ा था उसे हमने अपनी शकल में
जो रहमत मिले धधकते दावानल में
अब जब हो ही गया है वो साज़िश में शामिल
ताक़त की खातिर, जमीनों की खातिर

तो ज़ाहिर है के वो भी बदनाम होगा
उसपर न बंदों को एहतराम होगा
वो भी खड़ा होगा दसों कटघरों में
उस पर भी कत्लों का इल्ज़ाम होगा

(This stems from the thought that how an omnipotent, omniscient God, who is supposed to be the creator of everyone and everything, has been reduced to mere reason behind unrest, hatred, and even land-grabs, a mere partner in crime.) 


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