बचपन – Delhi Poetry Slam

बचपन

By Aditya Parihar

एक जवानी तू ले ले  और बचपन तू दे दे
लगे कीमती ये बंगला तो पुराना घर दे दे

ले ले ये गाड़ी वो लूना थी बढ़िया
थी सोफे से बेहतर निवाड वाली खटिया

घुटता सा दम है ,मखमल की चुभती है नर्मी
हीटर से बेहतर थी तब गुलाबी वाली गर्मी

सर्द मौसम की चाय संग गुड की लईया
झमघट में बात करते दुबके ओढ़े रजईयां

तोहफे में आते  थे मटर, बेर ,बूट, होरे 
सलीके से फिरते थे मोहल्ले के छोरे

अच्छा तो हुआ करता था मंजन दातून का
थैला भी बन जाता था पुराने पतलून का

टकी शर्ट ना हो चाहे खुले हो जूतों के फीते
दिन थे अलग  तब सब  कितने बेफिक्र जीते

चंद शब्दों की चिट्ठी सब बयां हाल करती
अब फोन की घंटी कहीं भी हलाकान करती 

एक जवानी तू ले ले  और बचपन तू दे दे
लगे कीमती ये बंगला  तो पुराना घर दे दे

वादा ये कर दे वही सब रहेगा 
वहीं सब हसेंगे ,वहीं सब रहेंगे।।


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