By Aditya Kant Shrivastava
जनम तूने पाया है।
चौथे दर्ज़े में आया है।
भीड़ भाड़ का सताया है।
कहीं किसी से छू न जाये इस डर का साया है।
बुलंद आवाज़ों ने हवा को रोका है।
तू छू ना जाये,इसलिए भी तुझे कोसा है।
खेल बड़ा मज़ेदार है।
हार तेरी हर बार है।
गद्दी पे बैठा पोथी पढता तेरा भाग्य विधाता,
पीढ़ी दर पीढ़ी तुमको बताएगा,
तुझको तेरा दर्ज़ा याद दिलाएगा।
कचरे का ढेर ही तेरा स्वर्ग है।
करले सफाई बना ले अपना महल।
रात्रि प्रहाण तेरे हिस्से आयी है।
अब समझा कहा आसमान कहा खाई है।
युगो की तस्वीर तू क्या बदलेगा।
क्या अपनी धरती अपना आसमान बना लेगा।
जनम तूने पाया है।
चौथे दर्ज़े में आया है।