By Abhishek Yadav
आज दिल फिर कुछ कहना चाहता है,
पूछना था — सुनोगी क्या?
मेरे दिल के सभी सवालों का जवाब बनोगी क्या?
तुम तो न जाने कैसे रह लेती हो,
बिना बेचैन हुए जी लेती हो;
पर मेरी इन बेचैनियों का
एक प्यारा सा सुकून बनोगी क्या?
आज दिल फिर कुछ कहना चाहता है,
पूछना था — सुनोगी क्या?
सुबह की नींद खुलती नहीं मेरी,
मुझे अपना चेहरा दिखाकर नींद से उठाओगी क्या?
रातों को नींद आती नहीं अब मुझे,
अपने हाथ को मेरी सुकून भरी नींद के लिए तकिया बनाओगी क्या?
मुझे नहीं पता कि तुम्हारी इबादत कैसे करूँ,
पर हमारी ख़ुशी के लिए तुम ईश्वर की इबादत करोगी क्या?
आज दिल फिर कुछ कहना चाहता है,
पूछना था — सुनोगी क्या?
कुछ सपने देखे हैं हमने,
उन सपनों की खूबसूरत हकीकत बनोगी क्या?
एक पल की दूरी भी तड़पाती है अब तो,
मेरे साथ जवानी से बुढ़ापा देखोगी क्या?
क्या खूबसूरत वो मंजर होगा,
जहाँ हम और हमारा प्यार होगा;
ना कुछ पाने की तमन्ना, ना कुछ खोने का ग़म होगा।
मैं तो हो ही गया तेरा,
तुम भी मेरी हो पाओगी क्या?
आज दिल फिर कुछ कहना चाहता है,
पूछना था — सुनोगी क्या?
चलो, मैंने दिल में उमड़ते असीम प्रेम से
तुम्हें तो रूबरू करा दिया;
तुम भी अपने दिल की बात मुझे बताओगी क्या?
मेरी इन ख़्वाहिशों से ख़ुद की तमन्नाओं को जोड़ पाओगी क्या?
क्या करूँ, मेरा ये दिल बहुत नादान है —
इसे एक बच्चे की तरह संभालोगी क्या?
मेरी ज़िंदगी के सफ़र को ख़ूबसूरत बनाने के लिए
मेरी हमसफ़र बनोगी क्या?
आज दिल फिर कुछ कहना चाहता है,
पूछना था — सुनोगी क्या?