मोटा चोर – Delhi Poetry Slam

मोटा चोर

By Abhishek Hoshing

मोटेलाल ने चोर बनने की ठानी,
और अपने दोस्तों की एक नहीं मानी,
बोला, “चोरी करना मेरा भी हक़,
और कहा लिखा है कि,
चोर बनने के लिए दुबला होना आवश्यक है?”

“इसे न समझे आप मेरी मानसिक बिमारी,
मैं भी करूँगा कमर कस कर तैयारी,
आज तक दुबले चोरों ने ही बाज़ी मारी है,
पर हो जाएँ तैयार, अब मोटेलाल की बारी है।”

मैं भी अब कसरत करूँगा,
बाक़ी चोर मित्रों सा फ़ुर्तिला बनूँगा।
मुझे भी चोरी की उच्च परंपरा निभानी है,
क्योंकि चपलता ही अच्छे चोर की निशानी है।

कसरत का पहला दिन ही देर से उगा,
दोपहर हो गई पर मोटेलाल न जगा,
आँख खुली तो सूरज पश्चिम की ओर था,
पर मोटेलाल के संकल्प में अभी भी ज़ोर था।

अगली सुबह पाँच का अलाराम लगाया,
पर वह बजा, तो मोटेलाल अलसाया,
दिल पर पत्थर रख उसने बिस्तर छोड़ा,
और क़दमों को मैदान की ओर मोड़ा।

मैदान की पहली प्रदक्षिणा में वह भाँप गया,
दिल ज़ोर से धड़का और वह हाँफ गया,
सोचा फ़ुर्तिला मैं बाद में भी बन पाऊँगा,
कल से चोरी के काम पर लग जाऊँगा!

पड़ोस के लाला का घर बंद पड़ा था,
और मोटेलाल भी ज़िद पे अड़ा था,
रात को खिड़की से वह घर में घुसा,
और अनजाने में ही मुसीबत में फँसा।

रसोईघर में कुछ लड्डू दिखे,
पकवान और भी थे, कुछ मीठे कुछ तीखे;
सोचा, “सबको थोड़ा-थोड़ा चखना पड़ेगा,
और चोरी का निश्चय थोड़ा ताक पर रखना पड़ेगा।”

मोटेलाल खाता ही चला गया,
मोटापे का फ़र्ज़ निभाता ही चला गया,
फिर ली उसने बड़ी जमुहाई,
और दिखी उसे चारपाई,
मुलायम तकिया और कोमल रज़ाई।

करने कुछ गया था,
कुछ और ही हो गया।
चोरी करना तो दूर,
वह तो घोड़े बेचकर सो गया!

किवाड़ की आवाज़ से नींद खुली,
और लालाजी के लौटने की आहट मिली,
“हे भगवान! बचा ले! कर कृपा!”
सोचकर मोटेलाल पर्दे के पीछे छिपा।

पर यहाँ भी क़िस्मत,
कुछ और ही लिख रही थी;
पर्दे के पीछे से भी,
मोटेलाल की तोंद दिख रही थी।

लालाजी ने पकड़ लिया,
और जो फटकार लगाई है;
कोतवाली में मोटेलाल की,
अकाल ठिकाने आयी है।

चोरी का भूत सर से उतरा,
चैन की नींद अब पायी है;
अपनी पसंद का काम करता अब,
मोटेलाल हलवाई है।


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